shashi's world

Wednesday, October 03, 2007

जिन्दगी कैसी है पहेली..

आज कई दिनों बाद फिर से ऋषिकेश मुख़र्जी की फ़िल्म आनंद देखी. शायद पांचवी बार देख रहा था. पिछली चार बार तो ख़ूब रोया था देखकर. इस बार सोचा की ऐसा नहीं होगा. आखिरी पाँच मिनट में एहसास भी नहीं हुआ की कब आंसू निकल पड़े. कई रिश्ते खून के रिश्ते ना होकर भी हमें जान से प्यारे होते हैं. अपनी जिन्दगी में भी कुछ ऐसे लोगों को यादकर आंसूओं का सिलसिला बस चलता रहा. ऐसे लोग जिन्होंने बिना किसी वजह बिना किसी स्वार्थ के मुझे सब कुछ दिया. भले ही मैंने उनके लिए कभी ख़ास वक़्त भी न निकाला हो. आंसू ही प्यार की सबसे बड़ी निशानी होती है शायद. जब भी मैं अपने आपको अकेला पता हूँ तो इनके स्मरण मात्र से शक्ति का आभास होता है.